शायरी --"मेरी फ़ितरत है मस्ताना।" मनोज मुंतशिर

 


"मेरी फ़ितरत है मस्ताना।"  मनोज मुंतशिर 

 

मैं खंडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले 

तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले

 

 

 

वो मेरा चांद सौ टुकड़ों में टूटा 

जिसे मैं देखता था आंख भर के 

जहां पर लाल हो जाते हैं आंसू 

मैं लौटा हूं उसी हद से गुज़र के 

 

 

 

सवाल इक छोटा सा था, जिसके पीछे 

ये सारी ज़िंदगी बर्बाद कर ली 

भुलाऊं किस तरह वो दोनों आंखें 

किताबों की तरह जो याद कर ली 

 

 

 

 

तुम हां कह दो, मैं हां कह दूं

इनकार करो, इनकार करूं

जिस प्यार में इतनी शर्ते हैं 

उस प्यार से कैसे प्यार करूं 

 

 

 

आंखों की चमक, जीने की लहक

सांसों की रवानी वापस दे 

मैं तेरे ख़त लौटा दूंगा

तू मेरी जवानी वापस दे 

 

 

 

जूते फटे पहन के आकाश पे चढ़े थे 

सपने हमारे हरदम औक़ात से बड़े थे

                      ---------- मनोज मुंतशिर ---------


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